पत्नी के मन में एक विचार कौंधा। शादी के तीन साल बीत चुके थे, और एक दिन उसने सोचा, "अगर मैं चली जाऊं तो क्या होगा? मेरे पति की प्रतिक्रिया कैसी होगी?"
उत्सुकतावश, उसने अपने पति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उसने एक पत्र लिखा:
"मैं अब इस रिश्ते में खुश नहीं हूँ। मुझे लगता है कि हम अलग-अलग रास्ते पर जा रहे हैं, और मेरे लिए अब यहाँ रहना संभव नहीं है। मैं तुम्हें छोड़कर जा रही हूँ।"
उसने पत्र को मेज पर रखा और खुद बिस्तर के नीचे छिप गई, यह देखने के लिए कि उसके पति क्या करते हैं।
कुछ देर बाद, पति घर लौटा। उसने पत्नी को इधर-उधर देखा, लेकिन वह कहीं नहीं दिखी। तभी उसकी नजर मेज पर रखे पत्र पर पड़ी। पत्र पढ़ने के बाद वह कुछ क्षण शांत खड़ा रहा। फिर उसने पत्र के पीछे कुछ लिखा, अपना पसंदीदा संगीत बजाया और कमरे में घूमने लगा।
उसने अपने कपड़े बदले और किसी को फोन किया। उसकी बातों से लग रहा था कि वह खुश है। वह कह रहा था, "हाँ, आखिरकार! उसे समझ आ गया कि यह रिश्ता उसके लिए सही नहीं था। अब मैं आज़ाद हूँ। हम जल्द ही मिलते हैं।"
बिस्तर के नीचे छिपी पत्नी यह सब सुनकर दुखी हो गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए। जब पति बाहर चला गया, तो वह धीरे से बिस्तर के नीचे से निकली और कांपते हाथों से पत्र उठाया। उसने उसे पलटा और पीछे लिखी पंक्तियाँ पढ़ीं:
"पगली! तुम्हें छिपना भी ठीक से नहीं आता। तुम्हारे पैर बिस्तर के नीचे से दिख रहे थे। जल्दी से उठो और चाय बनाओ, मैं अभी दुकान से तुम्हारे लिए बिस्किट लेकर आता हूँ।"
उसके नीचे एक और पंक्ति लिखी थी:
"मेरी खुशी तो तुमसे ही है। थोड़ा तुम्हें परेशान करने में और थोड़ा तुम्हें मनाने में। आखिर में तो हमें साथ ही रहना है ना! कभी प्यार से, कभी शरारत से, हम हमेशा एक-दूसरे के साथ रहेंगे। जब तक यह जीवन है, हम एक-दूसरे का साथ देंगे, हर सुख-दुख में।"
यह पढ़कर पत्नी का हृदय भर आया। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और यह भी समझ आया कि उसका पति उससे कितना गहरा प्यार करता है। उसकी छोटी सी परीक्षा ने उसे सिखा दिया कि सच्चा प्यार तो छोटी-छोटी बातों में और एक-दूसरे के प्रति समर्पण में ही छिपा होता है।